Insects Pest of Potato
1-माहुं या चेंपा (Aphids)

माहुं कीट एक सर्वव्यापी व बहुभक्षी कीट है। ये रस चूसने वाले कीट की श्रेणी में आते हैं। माइजस परसिकी (Myzus persicae) व एफिस गौसिपी (Aphis gossypii) नामक मांहू आलू की फसल पर प्रत्यक्ष रूप से तो ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाते परंतु ये विषाणुओं को फैलाते हैं। रोग मुक्त बीज आलू उत्पादन में ये कीट प्रमुख बाधक हैं।
आलू में मांहू या चेपा कीट के लक्षण एवं नुकसान:
माहुं, पत्ती मोड़क (PLRV) व वाई वायरस (PVY) के मुख्य वाहकों के रूप में कार्य करते हैं तथा इन वायरस रोगों से फसल को भारी नुकसान होता है। फसल पर माहुं के मानिटरिंग से इसके द्वारा बीज फसल में बढ़ने वाले वायरस आपतन को कम किया जा सकता हैं। फसल या खेतों में माहुं के प्रभाव को आँकने के लिए उनकी गिनती 100 यौगिक पत्तियों पर प्रति सप्ताह की जाती हैं। यदि इनकी संख्या 20 माहुं/100 पत्ती हो जाए तो इस पर रसायन का छिडकाव जरूरी हो जाता है।
मांहू या चेपा की रोकथाम कैसे करें।
कीट नाशकों का उपयोग
मैदानी क्षेत्रों में : मिट्टी में पर्याप्त नमी होने पर बुवाई के समय नालियों में फोरेट 10G की 10 किलोग्राम मात्रा का प्रति हैक्टेयर की दर से उपचार करके माहुं जैसे रोग वाहकों को 45 दिनों तक फ़सल पर आने से रोका जा सकता है। इसके बाद आवश्यकता पड़ने पर फसल पर किसी उपयुक्त कीटनाशक जैसे इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल., 3ml/10 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।पहाड़ी क्षेत्रों में : पहाड़ी इलाकों में आलू की खेती वर्षा पर निर्भर करती है अतः दानेदार कीटनाशक से उपचार, नमी की कमी या ज्यादा बारिश के कारण प्रभावशाली नहीं रहता। इसलिए फ़सल पर मांहू के आगमन पर पैनी नजर रखें तथा डंठलों की कटाई तक उपरोक्त सिफ़ारिश किए गए कीटनाशकों, इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल., 3ml/10 लीटर पानी में का 10-15 दिनों पर आवश्यकतानुसार 1-2 छिड़काव करें।
2. सफेद मक्खी (White flies)

सफेद मक्खी एक बहुभक्षी कीट है। बेमिसिया (Bemicia sps.) प्रजाति की सफेद मक्खियाँ आलू फसल को नुकसान पहुंचाती है। ये छोटे नरम शरीर वाले सफेद कीड़े हैं जो पत्तियों का रस चूसते हैं। रोग मुक्त बीज आलू उत्पादन हेतु सफेद मक्खी की रोकथाम आवश्यक है।
लक्षण एवं नुकसान:
ये कीट मुख्य रूप से आलू में जेमिनी वाइरस और एपिकल लीफ कर्ल वाइरस के लिए वाहक का काम करते हैं। पत्तियों से रस चूसने के कारण पौधे अशक्त हो जाते हैं। संक्रमित पत्तियों के ऊपर हनी ड्यू के स्राव के कारण यह सुख कर चिपचिपा हो जाता है। वाइरस के कारण पत्ते मुड़ जाते हैं एवं पौधे पीले पड़ जाते हैं।
रोकथाम के उपाय
आलू की फसल पर सफेद मक्खियों की संख्या को मॉनिटर करने एवं इन्हे पकड़ने हेतु पीली चिपचिपी ट्रेप का प्रयोग करें।घास और वैकल्पिक परपोषी पौधों को निकाल दें।आवश्यकता के अनुसार 10 दिनों के अंतराल पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. की 2ml/10 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
3. कर्तक कीट (Cutworm)
कर्तक कीट आलू का एक प्रमुख कीट है। ये मैदानी तथा पहाड़ी, दोनों इलाकों में सक्रिय रहते हैं। सूखे के मौसम में जब पौधों के तने नए और कोमल होते हैं, इसका प्रकोप बहुत तेजी से फैलता है। यह एक सर्वव्यापी व बहुभक्षी कीट है। भारत में आलू की फसल को यह कीट 12-40 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचाता है।
लक्षण एवं नुकसान: फसल को केवल ईल्ली (Caterpillar) के कारण ही नुकसान पहुंचता है। ये ईल्ली रात के समय आलू की नई शाखाओं या जमीन के नीचे दबे हुए कंदों को खाते हैं। फसल की प्रारम्भिक अवस्था में ईल्ली अपना भोजन नए पौधे की डंठलो, तने और शाखाओं से ग्रहण करता है। बाद में यह कन्दों को छेदकर खाते हुए नुकसान पहुंचाते हैं जिससे कुल पैदावार तो घटती ही है, साथ ही साथ बाज़ार में भी इनका दाम कम मिलता है।
रोकथाम के उपाय
मैदानों में गर्मियों में जुताई करके अवयस्क अवस्था में ही कर्तक कीट वृद्धि को कम किया जा सकता है। जुताई के कारण जमीन से बाहर आए हुए इन कीडों को इसके प्रकृतिक शत्रु कौआ, मैना आदि खा लेते हैं।कर्तक कीट का प्रकोप देखते ही पत्तियों पर कीटनाशक कलोरपाइरीफोस 20 ईसी 2.5 लीटर प्रति हेक्टयर की दर से प्रयोग करें या डाइकलोरवास 76ईसी को 1ml/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।जैविक नियंत्रण हेतु इसके कुछ मुख्य परजीवी ब्रोस्कस पंकटेटस, लियोग्रिलस बायमेकूलेटस, ओपलोपस हिप्सीपैली इत्यादि
4. सफेद सूँडी (white Grub)
सफेद सूँडी आलू की फसल में मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में पाये जाते हैं। उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश, जम्मू व कश्मीर तथा पूर्वोत्तरी पहाड़ी इलाकों में, इसके कारण प्रभावित आलू की फसल को 10 से 80 प्रतिशत तक नुकसान होता है। देर से खोदी गई फसल पर नुकसान अधिक होता है।

लक्षण एवं नुकसान:
आलू की फसल को नुकसान पहुंचाने वाली सफेद सूँडी की प्रमुख प्रजातियाँ ब्राहमीना कोरेसिया तथा ब्राहमीना लोंगीपेनिस हैं। ये सूँडी प्रारम्भ में मिट्टी के जैविक पदार्थों को खाती है परंतु बाद में ये पौधों की जड़ो को खाकर अपना पेट भरते हैं। इसका लार्वा आलू कंदों में सुराख बनाते हुए अपना भोजन करते हैं। इससे बाजार में आलू की कम कीमत मिलती है।
रोकथाम के उपाय
कृषि एवं यांत्रिक उपाय
परपोषी वृक्षों व उसकी शाखाओं को अच्छी तरह हिलाकर भृंगो को इकट्ठा कर किसी कीटनाशी का इस्तेमाल करके इन्हें मारा जा सकता है।मानसून आने से पहले अप्रैल- मई के महीने में खेत दो से तीन बार जुताई करें और मिट्टी को खुला छोड़ें ताकि बाहर निकली सूँडी और प्यूपा को इनके स्वाभाविक दुश्मन जैसे कौवा, मैना आदि खा लें।रात में वयस्क कीटों को प्रकाश ट्रेप की सहायता से पकड़कर नष्ट कर दें।खेतों में सदैव गोबर कि अच्छी तरह से सड़ी गली खाद ही डालें।
रसायनिक नियंत्रण
वयस्क सुंडियों को मारने के लिए परपोषी पौधों पर कीटनाशकों जैसे कलोरपाइरीफोस 20 ईसी को 2.5 ml/लीटर पानी में घोल कर मॉनसून के तुरंत बाद छिड़काव करना चाहिए।बुवाई या मिट्टी चढ़ाते समय पौधों के नजदीक देहिक कीटनाशी जैसे फोरेट 10 G या कार्बोफ्यूरान 3 G कि 2.5 से 3.0 किलोग्राम वास्तविक मात्रा का प्रति हेक्टर कि दर से उपचार करें।
5. आलू कंद शलभ (Potato Tuber Moth)
आलू कंद शलभ मुख्यत: भारत के छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश), कर्नाटक, कांगड़ा (हि.प्र.), कुमाऊँ की पहाड़ियाँ (उत्तराखंड), मेंघालय, नीलगिरी (तमिलनाडू), पुणे (महाराष्ट्र), रांची (झारखंड) तथा पश्चिम बंगाल के इलाकों में पाये जाते हैं। सोलेनिसियस परिवार की कुछ पौध जैसे बैंगन, टमाटर, आलू, तंबाकू तथा धतूरा इसके प्रमुख परपोषी पौधे हैं।
लक्षण एवं नुकसान:
आलू कंद शलभ की तितली सबसे पहले पत्तियों तथा मिट्टी से बाहर निकले हुए आलू कंदों पर अंडे दे देती हैं। इन अंडो से निकला हुआ लार्वा आलू की पत्तियों एवं तनों को खाते हुए उसमें सुरंग बना देते हैं। देशी भंडारगृह में रखे आलुओं की आंखों को भेदकर उसमें सुराख बना देते हैं। बाद में इन क्षतिग्रस्त आलुओं में फफूंद लग जाती हैं जिससे ये सड़ जाते हैं।
यह कीट भंडारण एवं खेतों में आलू की फसल को 60-70 प्रतिशत तक हानि पहुंचाता है।



पीटीएम से प्रभावित आलू कंद एवं PTM तितली व लार्वा
रोकथाम के उपाय
सिर्फ एक उपचार से इस कीट की रोकथाम संभव नहीं हैं। खेत एवं भंडारगृहों में PTM के नियंत्रण के लिए एकीकृत प्रबंधन तरीकों को अपनाना ज़रूरी है। इस कीड़े के प्रभावी नियंत्रण हेतु निम्नलिखित उपाय हैं।
खेतों में बुआई के लिए स्वस्थ रोग एवं कीट रहित बीज आलू का ही प्रयोग करना चाहिए।खेतों में आलू की बीजाई 10 सेंटीमीटर गहराई तक करने से यह कीट काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। खेतों में समय से कन्दों पर मिट्टी चढ़ाना चाहिए ताकि कोई भी कन्द ज़मीन से बाहर न रहें।खेतों में नियमित रूप से सिंचाई करते रहे जिससे खेतों में दरार न आने पाये।भंडारगृह में आलू के ढेर के नीचे एवं ऊपर सूखी हुई लेंटाना या सफ़ेदा की 2.5 सेंटीमीटर मोटी तह बिछाने पर इन कीटों से बचा जा सकता है।बीज के लिए भंडारित आलुओं पर फेनवेलरेट 2 प्रतिशत या मैलथियन 5 प्रतिशत या क्विनोल्फ़ोस 1.5 प्रतिशत धूल 125 ग्राम/क्विंटल आलू की दर से प्रयोग करें। खाने वाले आलू पर इस रसायन का प्रयोग न करें।खाने हेतु आलू के ऊपर बेसिलस थूरिंनजियंसिस (Bt) या ग्रेनुलोसिस वायरस (GV) के चूर्ण का 300 ग्राम/क्विंटल की दर से छिड़काव करें।खेतों में कन्द शलभ को पकड़ने हेतु यौन गंध आधारित जल ट्रेप (20 ट्रेप/हेक्टयर) का प्रयोग प्रभावशाली रहता है।भंडारगृह में कन्द शलभ को रोकने हेतु परजीवी अथवा सूक्ष्म शाकाणु, फफूंद, चींटियों, छिपकलियों आदि स्वाभाविक शत्रुओं की बढ़वार होने देना चाहिए।
रोग एवं उपचार
अगेतीअंगमारी
यह रोग आल्तेरनेरिया सोलेनाई नामक फफूंदी के कारण लगता है उत्तरी भारत में इस रोग का आक्रमण शरद ऋतू के फसल पर नवम्बर में और बसंत कालीन फसल में फरवरी में होता है यह रोग कंद निर्माण से पहले ही लग सकता है निचे वाली पत्तियों पर सबसे पहले प्रकोप होता है जंहा से रोग बाद में ऊपर कि ओर बढ़ता है पत्तियों पर छोट छोटे गोल अंडाकार या कोणीय धब्बे बन जाते है जो भूरे रंग के होते है ये धब्बे सूखे एवं चटकने वाले होते है बाद में धब्बे के आकार में बृद्धि हो जाती है जो पूरी पत्ती को ढक लेती है रोगी पौधा मर जाता है .
उपचार
फाइटोलान, ब्लिटाक्स- 50 का 0.3 प्रतिशत 12 से 15 दिन के अन्तराल मेंं 3 बार छिड़काव करना चाहिए।
पछेती अंगमारी
यह रोग फाइटो पथोरा इन्फैस्तैन्स नामक फफूंदी के द्वारा होता है इस रोग में पत्तियों कि शिराओं , तानो डंठलो पर छोटे भूरे रंग के धब्बे उभर आते है जो बाद में काले पड़ जाते है और पौधे के भूरे भाग गल सड़ जाते है रोकथाम में देरी होने पर आलू के कंद भूरे बैगनी रंग में परवर्तित होने के उपरांत गलने शुरू हो जाते है .
बोर्डो मिश्रण 4:4:50, कॉपर ऑक्सी क्लोराइड का 0.3 प्रतिशत का छिड़काव 12-15 दिन के अन्तराल मे तीन बार किया जाना चाहिए।
काली रुसी ब्लैक स्कर्फ
यह रोग राइजोक्टोनिया सोलेनाई नामक फफूंदी के कारण होता है इस रोग का आक्रमण मैदानी या पर्वतीय क्षेत्र में होता है रोगी कंदों प़र चाकलेटी रंग के उठे हुए धब्बो का निर्माण हो जाता है जो धोने से साफ नहीं होते है है इस फफूंदी का प्रकोप बुवाई के बाद आरम्भ होता है जिससे कंद मर जाते है और पौधे दूर दूर दिखाई पड़ते है .
उपचार
10 लीटर देसी गाय का गोमूत्र में 2 किलो अकौआ की पत्ती 2किलो नीम की पत्ती 2किलो बेसरम की पत्ती मिलाकर 10-15 दिन तक सड़ाकर इस मूत्र को आधा शेष बचने तक उबालकर फिर इसके लीटर 1 मिश्रण को 200 लीटर पानी में मिलाकर तर बतर कर पम्प द्वारा प्रति एकड़ छिड़काव करे
भूमि जनित बीमारी जड़ सडन रोग , दीमक आदि के लिए अरंडी कि खली और नीम खाद अपने खेतो में प्रयोग करे
1-माहुं या चेंपा (Aphids)
माहुं कीट एक सर्वव्यापी व बहुभक्षी कीट है। ये रस चूसने वाले कीट की श्रेणी में आते हैं। माइजस परसिकी (Myzus persicae) व एफिस गौसिपी (Aphis gossypii) नामक मांहू आलू की फसल पर प्रत्यक्ष रूप से तो ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाते परंतु ये विषाणुओं को फैलाते हैं। रोग मुक्त बीज आलू उत्पादन में ये कीट प्रमुख बाधक हैं।
आलू में मांहू या चेपा कीट के लक्षण एवं नुकसान:
माहुं, पत्ती मोड़क (PLRV) व वाई वायरस (PVY) के मुख्य वाहकों के रूप में कार्य करते हैं तथा इन वायरस रोगों से फसल को भारी नुकसान होता है। फसल पर माहुं के मानिटरिंग से इसके द्वारा बीज फसल में बढ़ने वाले वायरस आपतन को कम किया जा सकता हैं। फसल या खेतों में माहुं के प्रभाव को आँकने के लिए उनकी गिनती 100 यौगिक पत्तियों पर प्रति सप्ताह की जाती हैं। यदि इनकी संख्या 20 माहुं/100 पत्ती हो जाए तो इस पर रसायन का छिडकाव जरूरी हो जाता है।
मांहू या चेपा की रोकथाम कैसे करें।
कीट नाशकों का उपयोग
मैदानी क्षेत्रों में : मिट्टी में पर्याप्त नमी होने पर बुवाई के समय नालियों में फोरेट 10G की 10 किलोग्राम मात्रा का प्रति हैक्टेयर की दर से उपचार करके माहुं जैसे रोग वाहकों को 45 दिनों तक फ़सल पर आने से रोका जा सकता है। इसके बाद आवश्यकता पड़ने पर फसल पर किसी उपयुक्त कीटनाशक जैसे इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल., 3ml/10 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।पहाड़ी क्षेत्रों में : पहाड़ी इलाकों में आलू की खेती वर्षा पर निर्भर करती है अतः दानेदार कीटनाशक से उपचार, नमी की कमी या ज्यादा बारिश के कारण प्रभावशाली नहीं रहता। इसलिए फ़सल पर मांहू के आगमन पर पैनी नजर रखें तथा डंठलों की कटाई तक उपरोक्त सिफ़ारिश किए गए कीटनाशकों, इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल., 3ml/10 लीटर पानी में का 10-15 दिनों पर आवश्यकतानुसार 1-2 छिड़काव करें।
2. सफेद मक्खी (White flies)
सफेद मक्खी एक बहुभक्षी कीट है। बेमिसिया (Bemicia sps.) प्रजाति की सफेद मक्खियाँ आलू फसल को नुकसान पहुंचाती है। ये छोटे नरम शरीर वाले सफेद कीड़े हैं जो पत्तियों का रस चूसते हैं। रोग मुक्त बीज आलू उत्पादन हेतु सफेद मक्खी की रोकथाम आवश्यक है।
लक्षण एवं नुकसान:
ये कीट मुख्य रूप से आलू में जेमिनी वाइरस और एपिकल लीफ कर्ल वाइरस के लिए वाहक का काम करते हैं। पत्तियों से रस चूसने के कारण पौधे अशक्त हो जाते हैं। संक्रमित पत्तियों के ऊपर हनी ड्यू के स्राव के कारण यह सुख कर चिपचिपा हो जाता है। वाइरस के कारण पत्ते मुड़ जाते हैं एवं पौधे पीले पड़ जाते हैं।
रोकथाम के उपाय
आलू की फसल पर सफेद मक्खियों की संख्या को मॉनिटर करने एवं इन्हे पकड़ने हेतु पीली चिपचिपी ट्रेप का प्रयोग करें।घास और वैकल्पिक परपोषी पौधों को निकाल दें।आवश्यकता के अनुसार 10 दिनों के अंतराल पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. की 2ml/10 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
3. कर्तक कीट (Cutworm)
कर्तक कीट आलू का एक प्रमुख कीट है। ये मैदानी तथा पहाड़ी, दोनों इलाकों में सक्रिय रहते हैं। सूखे के मौसम में जब पौधों के तने नए और कोमल होते हैं, इसका प्रकोप बहुत तेजी से फैलता है। यह एक सर्वव्यापी व बहुभक्षी कीट है। भारत में आलू की फसल को यह कीट 12-40 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचाता है।
रोकथाम के उपाय
मैदानों में गर्मियों में जुताई करके अवयस्क अवस्था में ही कर्तक कीट वृद्धि को कम किया जा सकता है। जुताई के कारण जमीन से बाहर आए हुए इन कीडों को इसके प्रकृतिक शत्रु कौआ, मैना आदि खा लेते हैं।कर्तक कीट का प्रकोप देखते ही पत्तियों पर कीटनाशक कलोरपाइरीफोस 20 ईसी 2.5 लीटर प्रति हेक्टयर की दर से प्रयोग करें या डाइकलोरवास 76ईसी को 1ml/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।जैविक नियंत्रण हेतु इसके कुछ मुख्य परजीवी ब्रोस्कस पंकटेटस, लियोग्रिलस बायमेकूलेटस, ओपलोपस हिप्सीपैली इत्यादि
4. सफेद सूँडी (white Grub)
सफेद सूँडी आलू की फसल में मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में पाये जाते हैं। उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश, जम्मू व कश्मीर तथा पूर्वोत्तरी पहाड़ी इलाकों में, इसके कारण प्रभावित आलू की फसल को 10 से 80 प्रतिशत तक नुकसान होता है। देर से खोदी गई फसल पर नुकसान अधिक होता है।
लक्षण एवं नुकसान:
आलू की फसल को नुकसान पहुंचाने वाली सफेद सूँडी की प्रमुख प्रजातियाँ ब्राहमीना कोरेसिया तथा ब्राहमीना लोंगीपेनिस हैं। ये सूँडी प्रारम्भ में मिट्टी के जैविक पदार्थों को खाती है परंतु बाद में ये पौधों की जड़ो को खाकर अपना पेट भरते हैं। इसका लार्वा आलू कंदों में सुराख बनाते हुए अपना भोजन करते हैं। इससे बाजार में आलू की कम कीमत मिलती है।
रोकथाम के उपाय
कृषि एवं यांत्रिक उपाय
परपोषी वृक्षों व उसकी शाखाओं को अच्छी तरह हिलाकर भृंगो को इकट्ठा कर किसी कीटनाशी का इस्तेमाल करके इन्हें मारा जा सकता है।मानसून आने से पहले अप्रैल- मई के महीने में खेत दो से तीन बार जुताई करें और मिट्टी को खुला छोड़ें ताकि बाहर निकली सूँडी और प्यूपा को इनके स्वाभाविक दुश्मन जैसे कौवा, मैना आदि खा लें।रात में वयस्क कीटों को प्रकाश ट्रेप की सहायता से पकड़कर नष्ट कर दें।खेतों में सदैव गोबर कि अच्छी तरह से सड़ी गली खाद ही डालें।
रसायनिक नियंत्रण
वयस्क सुंडियों को मारने के लिए परपोषी पौधों पर कीटनाशकों जैसे कलोरपाइरीफोस 20 ईसी को 2.5 ml/लीटर पानी में घोल कर मॉनसून के तुरंत बाद छिड़काव करना चाहिए।बुवाई या मिट्टी चढ़ाते समय पौधों के नजदीक देहिक कीटनाशी जैसे फोरेट 10 G या कार्बोफ्यूरान 3 G कि 2.5 से 3.0 किलोग्राम वास्तविक मात्रा का प्रति हेक्टर कि दर से उपचार करें।
5. आलू कंद शलभ (Potato Tuber Moth)
आलू कंद शलभ मुख्यत: भारत के छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश), कर्नाटक, कांगड़ा (हि.प्र.), कुमाऊँ की पहाड़ियाँ (उत्तराखंड), मेंघालय, नीलगिरी (तमिलनाडू), पुणे (महाराष्ट्र), रांची (झारखंड) तथा पश्चिम बंगाल के इलाकों में पाये जाते हैं। सोलेनिसियस परिवार की कुछ पौध जैसे बैंगन, टमाटर, आलू, तंबाकू तथा धतूरा इसके प्रमुख परपोषी पौधे हैं।
लक्षण एवं नुकसान:
आलू कंद शलभ की तितली सबसे पहले पत्तियों तथा मिट्टी से बाहर निकले हुए आलू कंदों पर अंडे दे देती हैं। इन अंडो से निकला हुआ लार्वा आलू की पत्तियों एवं तनों को खाते हुए उसमें सुरंग बना देते हैं। देशी भंडारगृह में रखे आलुओं की आंखों को भेदकर उसमें सुराख बना देते हैं। बाद में इन क्षतिग्रस्त आलुओं में फफूंद लग जाती हैं जिससे ये सड़ जाते हैं।
यह कीट भंडारण एवं खेतों में आलू की फसल को 60-70 प्रतिशत तक हानि पहुंचाता है।
पीटीएम से प्रभावित आलू कंद एवं PTM तितली व लार्वा
रोकथाम के उपाय
सिर्फ एक उपचार से इस कीट की रोकथाम संभव नहीं हैं। खेत एवं भंडारगृहों में PTM के नियंत्रण के लिए एकीकृत प्रबंधन तरीकों को अपनाना ज़रूरी है। इस कीड़े के प्रभावी नियंत्रण हेतु निम्नलिखित उपाय हैं।
खेतों में बुआई के लिए स्वस्थ रोग एवं कीट रहित बीज आलू का ही प्रयोग करना चाहिए।खेतों में आलू की बीजाई 10 सेंटीमीटर गहराई तक करने से यह कीट काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। खेतों में समय से कन्दों पर मिट्टी चढ़ाना चाहिए ताकि कोई भी कन्द ज़मीन से बाहर न रहें।खेतों में नियमित रूप से सिंचाई करते रहे जिससे खेतों में दरार न आने पाये।भंडारगृह में आलू के ढेर के नीचे एवं ऊपर सूखी हुई लेंटाना या सफ़ेदा की 2.5 सेंटीमीटर मोटी तह बिछाने पर इन कीटों से बचा जा सकता है।बीज के लिए भंडारित आलुओं पर फेनवेलरेट 2 प्रतिशत या मैलथियन 5 प्रतिशत या क्विनोल्फ़ोस 1.5 प्रतिशत धूल 125 ग्राम/क्विंटल आलू की दर से प्रयोग करें। खाने वाले आलू पर इस रसायन का प्रयोग न करें।खाने हेतु आलू के ऊपर बेसिलस थूरिंनजियंसिस (Bt) या ग्रेनुलोसिस वायरस (GV) के चूर्ण का 300 ग्राम/क्विंटल की दर से छिड़काव करें।खेतों में कन्द शलभ को पकड़ने हेतु यौन गंध आधारित जल ट्रेप (20 ट्रेप/हेक्टयर) का प्रयोग प्रभावशाली रहता है।भंडारगृह में कन्द शलभ को रोकने हेतु परजीवी अथवा सूक्ष्म शाकाणु, फफूंद, चींटियों, छिपकलियों आदि स्वाभाविक शत्रुओं की बढ़वार होने देना चाहिए।
रोग एवं उपचार
अगेतीअंगमारी
यह रोग आल्तेरनेरिया सोलेनाई नामक फफूंदी के कारण लगता है उत्तरी भारत में इस रोग का आक्रमण शरद ऋतू के फसल पर नवम्बर में और बसंत कालीन फसल में फरवरी में होता है यह रोग कंद निर्माण से पहले ही लग सकता है निचे वाली पत्तियों पर सबसे पहले प्रकोप होता है जंहा से रोग बाद में ऊपर कि ओर बढ़ता है पत्तियों पर छोट छोटे गोल अंडाकार या कोणीय धब्बे बन जाते है जो भूरे रंग के होते है ये धब्बे सूखे एवं चटकने वाले होते है बाद में धब्बे के आकार में बृद्धि हो जाती है जो पूरी पत्ती को ढक लेती है रोगी पौधा मर जाता है .
उपचार
फाइटोलान, ब्लिटाक्स- 50 का 0.3 प्रतिशत 12 से 15 दिन के अन्तराल मेंं 3 बार छिड़काव करना चाहिए।
पछेती अंगमारी
यह रोग फाइटो पथोरा इन्फैस्तैन्स नामक फफूंदी के द्वारा होता है इस रोग में पत्तियों कि शिराओं , तानो डंठलो पर छोटे भूरे रंग के धब्बे उभर आते है जो बाद में काले पड़ जाते है और पौधे के भूरे भाग गल सड़ जाते है रोकथाम में देरी होने पर आलू के कंद भूरे बैगनी रंग में परवर्तित होने के उपरांत गलने शुरू हो जाते है .
बोर्डो मिश्रण 4:4:50, कॉपर ऑक्सी क्लोराइड का 0.3 प्रतिशत का छिड़काव 12-15 दिन के अन्तराल मे तीन बार किया जाना चाहिए।
काली रुसी ब्लैक स्कर्फ
यह रोग राइजोक्टोनिया सोलेनाई नामक फफूंदी के कारण होता है इस रोग का आक्रमण मैदानी या पर्वतीय क्षेत्र में होता है रोगी कंदों प़र चाकलेटी रंग के उठे हुए धब्बो का निर्माण हो जाता है जो धोने से साफ नहीं होते है है इस फफूंदी का प्रकोप बुवाई के बाद आरम्भ होता है जिससे कंद मर जाते है और पौधे दूर दूर दिखाई पड़ते है .
उपचार
10 लीटर देसी गाय का गोमूत्र में 2 किलो अकौआ की पत्ती 2किलो नीम की पत्ती 2किलो बेसरम की पत्ती मिलाकर 10-15 दिन तक सड़ाकर इस मूत्र को आधा शेष बचने तक उबालकर फिर इसके लीटर 1 मिश्रण को 200 लीटर पानी में मिलाकर तर बतर कर पम्प द्वारा प्रति एकड़ छिड़काव करे
भूमि जनित बीमारी जड़ सडन रोग , दीमक आदि के लिए अरंडी कि खली और नीम खाद अपने खेतो में प्रयोग करे
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